रघुवर तुमको मेरी लाज ।
सदा सदा मैं शरण तिहारी, तुम हो ग़रीब निवाज ॥
पतित उधारन विरद तिहारो, श्रवन न सुनी आवाज ।
हूँ तो पतित पुरातन कहिये, पार उतारो जहाज ॥१॥
अघ खण्डन दुख भंजन जन के, यही तिहारो काज ।
तुलसीदास पर किरपा कीजे, भक्ति दान देहु आज॥२॥ – गोस्वामी तुलसीदास
स्वर: - पंडित भीमसेन जोशी
सदा सदा मैं शरण तिहारी, तुम हो ग़रीब निवाज ॥
पतित उधारन विरद तिहारो, श्रवन न सुनी आवाज ।
हूँ तो पतित पुरातन कहिये, पार उतारो जहाज ॥१॥
अघ खण्डन दुख भंजन जन के, यही तिहारो काज ।
तुलसीदास पर किरपा कीजे, भक्ति दान देहु आज॥२॥ – गोस्वामी तुलसीदास
स्वर: - पंडित भीमसेन जोशी