स्नेह-निर्झर बह गया है!
रेत ज्यों तन रह गया है।
आम की यह डाल जो सुखी दिखी,
कह रही है-"अब यहाँ पिक या शिखी
नहीं आते; पंक्ति मैं वह हूँ लिखी
नहीं जिसका अर्थ-"
जीवन दह गया है।
दिये हैं मैने जगत को फूल-फल,
किया है अपनी प्रतिभा से चकित-चल;
पर अनश्वर था सकल पल्लवित पल-
ठाट जीवन का वही
जो ढह गया है।
अब नहीं आती पुलिन पर प्रियतमा,
श्याम तृण पर बैठने को निरुपमा।
बह रही है हृदय पर केवल अमा;
मै अलक्षित हूँ; यही
कवि कह गया है। – सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'
रेत ज्यों तन रह गया है।
आम की यह डाल जो सुखी दिखी,
कह रही है-"अब यहाँ पिक या शिखी
नहीं आते; पंक्ति मैं वह हूँ लिखी
नहीं जिसका अर्थ-"
जीवन दह गया है।
दिये हैं मैने जगत को फूल-फल,
किया है अपनी प्रतिभा से चकित-चल;
पर अनश्वर था सकल पल्लवित पल-
ठाट जीवन का वही
जो ढह गया है।
अब नहीं आती पुलिन पर प्रियतमा,
श्याम तृण पर बैठने को निरुपमा।
बह रही है हृदय पर केवल अमा;
मै अलक्षित हूँ; यही
कवि कह गया है। – सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'
सुन्दर कविता........
जवाब देंहटाएंयह तो निराला जी की प्रसिध्द कविता है इसे फिरसे पढवाने का आभार ।
जवाब देंहटाएंसूर्यकांत त्रिपाठी ' निराला ' जी की कलम को शत शत नमन। धन्यवाद इस इसे पढवाने के लिये।
जवाब देंहटाएंनई-नई संवेदनाओं, भावों को सहज और आकर्षक रूप में कविता के रूप में ढालने में निराला का कोई जवाब नहीं...काश आज के दौर में भी हमें कोई निराला मिल पाता...उनकी कविताओं का मर्म हर बार नया और गहरे चोट करने वाला इसलिए होता था क्योंकि वे जो लिखते थे वही जीते भी थे..
जवाब देंहटाएंपंकज जी,कविता पढवाने के लिए धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंबहुत दिन बाद पढ़ी निराला जी की एक बेहतरीन कृति।...धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसूर्यकांत त्रिपाठी ' निराला ' जी की पावन स्मृतियों को प्रणाम
जवाब देंहटाएंकई बार पढ़ने की बाद भी इस कविता को दुबारा पढने का जी करता है.
जवाब देंहटाएंसंजय जी : आप इस कविता को संगीतबद्ध भी जरूर सुनिए ... धन्यबाद ...और आभार हमारे चिट्ठे पर आने का
जवाब देंहटाएंभाव प्रवणता से ओतप्रोत
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