आह! वेदना मिली विदाई
मैंने भ्रमवश जीवन संचित,
मधुकरियों की भीख लुटाई।
छलछल थे संध्या के श्रमकण
आँसू-से गिरते थे प्रतिक्षण
मेरी यात्रा पर लेती थी
नीरवता अनंत अँगड़ाई।
श्रमित स्वप्न की मधुमाया में
गहन-विपिन की तरु छाया में
पथिक उनींदी श्रुति में किसने
यह विहाग की तान उठाई।
लगी सतृष्ण दीठ थी सबकी
रही बचाए फिरती कब की
मेरी आशा आह ! बावली
तूने खो दी सकल कमाई।
चढ़कर मेरे जीवन-रथ पर
प्रलय चल रहा अपने पथ पर
मैंने निज दुर्बल पद-बल पर
उससे हारी-होड़ लगाई।
लौटा लो यह अपनी थाती
मेरी करुणा हा-हा खाती
विश्व ! न सँभलेगी यह मुझसे
इसने मन की लाज गँवाई। – जयशंकर प्रसाद
मैंने भ्रमवश जीवन संचित,
मधुकरियों की भीख लुटाई।
छलछल थे संध्या के श्रमकण
आँसू-से गिरते थे प्रतिक्षण
मेरी यात्रा पर लेती थी
नीरवता अनंत अँगड़ाई।
श्रमित स्वप्न की मधुमाया में
गहन-विपिन की तरु छाया में
पथिक उनींदी श्रुति में किसने
यह विहाग की तान उठाई।
लगी सतृष्ण दीठ थी सबकी
रही बचाए फिरती कब की
मेरी आशा आह ! बावली
तूने खो दी सकल कमाई।
चढ़कर मेरे जीवन-रथ पर
प्रलय चल रहा अपने पथ पर
मैंने निज दुर्बल पद-बल पर
उससे हारी-होड़ लगाई।
लौटा लो यह अपनी थाती
मेरी करुणा हा-हा खाती
विश्व ! न सँभलेगी यह मुझसे
इसने मन की लाज गँवाई। – जयशंकर प्रसाद
BEHTREEN RACHNA
जवाब देंहटाएंNAMAN KAVI JAI SHANKAR PARSAD JI KO.
आह वेदना मिली विदाई मैने भ्रम वश जीवन संचित मधुकारियो की भीख लुटाई
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